अपने क़िस्से कहानियाँ में तुम्हें अब सुनता नहीं,
इसका मतलब ये नहीं के अब तुम्हें मैं चाहता नहीं ।
नहीं बताता क्या बीतती है रोज़,
अपने एहसास अब नहीं जताता,
हर छोटी बात पर रूठ जाया करता था कभी,
लेकिन अब हर बात को दिल से नहीं लगाता।
सारे गिले-शिकवे बाट लेता हूँ ख़ुद में ही,
तुम्हारे सामने अपनी शिकायतें नहीं बताता,
समझा लेता हूँ अब ख़ुद को ख़ुद में ही,
तुम्हें समझाने तुम्हारे क़रीब नहीं आता,
नहीं लिखता अब वो बड़े बड़े टेक्स्ट मेसजेज़ तुम्हें,
तुम्हारे मेसजेज़ के इंतज़ार में वक़्त खाली नहीं बिताता,
कभी लग जाए एक फ़ोन कोल तुम्हें ग़लती से,
तो उस फ़ोन कोल पर अब घंटो नहीं बतियाता।
कभी आमन सामना भी हो जाता था तो मुस्कुरा दिया करता था,
लेकिन अब जो सामना हो जाए तो दिल से मुस्कुराता नहीं,
वो नज़रें मिला कर इशारों में बात करना तो दूर की बात है,
अब पहले की तरह नज़ारे तुमसे मिलता नहीं ।
किताबें आज भी ख़ूब पड़ता हूँ मैं,
लेकिन कौनसी किताब है ये नहीं बताता,
ज़रा बुरे दौर से गुज़र रही है ये ज़िंदगी,
बस ये मत समझना कि तुम्हें मैं चाहता नहीं।

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